मधुर -मिलन
..................उस मिलन -रात्रि पर हर ध्वनि संगीत बन मेरे कानों में
रस घोल रही थी ...........
दिल चाहा तुम्हारे अनुराग में डूबी मैं ................झूम -झूम कर गाऊँ
......पैर ख़ुशी से खुद-ब -खुद थिरकने लगे .......घर -बहार सब वैसा ही
था ....पर न जाने क्यों तुम्हे पा लेने की प्रसन्नता में सब कुछ कितना
बदला -बदला लग रहा था .............दीवारे जैसे ऊँचें पर्वतों में
परिवर्तित हो गयीं .....सारा साजो-सामान .....हरे - भरे वृक्षों जैसा
....सारा दृश्य जैसा कि किसी फिल्म के रोमांटिक सीन में फिल्माया
हुआ सा .............नायक -व् नायिका ............ मधुर संगीत
......और बस खूबसूरत वादियाँ .....ही ही ही ही ही ही ......मैं शायद
पगला गयीं हूँ तुम्हारे प्रेम में ..............................ये प्रेम भी
कितना प्यारा होता है न ..............................सब कुछ कितना
अच्छा लगने लगता है ..................हसीन ...मदभरा .......सुहाना -
सुहाना .......
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