"आमंत्रण "
लरजते भीगते मौसम का आमंत्रण स्वीकार कर लो
इस भीनी भीनी खुशबू का करीब से अंगीकार कर लो
बूंदों की इस हलचल में बरखा मचल कर सावन से टकरा रही है
तुम भी तड़पकर इस भीगते मौसम में हमें स्वीकार कर लो
न जाने क्तिने मोती बूँदें बन टपक रहे हैं आसमान से
मेरे आँचल में इन मोतियों की लड़ी जी भर जड़ने दो
आओ तुम भी अपने प्रेम से सिक्त कोमल -पवित्र मन पर
इन दिव्य -मोती -माणिक्य से परिपूर्ण बौछारों को भरने दो
तन-मन कैसा धुल रहा है,सतरंगी -प्रेमांगी हो रहा है
कुदरत ने दी है जो नियामत ,उस नियामत को स्वीकार कर लो
आज छा जाने दो ,मचल जाने दो अरमां इस निश्छल मन के
मन की भीतरी गुह से अपने हर भाव-विभाव को बहार आने दो
बाकी कुछ न रहे ,अन कहे ,अनसुलझे जज्बात आज दिल के अन्दर
कह कर सभी आरजुएँ ,पूरी कर मन की हर बात इसे स्वीकार कर लो
याद रखना प्रियवर ये तो मौसम है आया है ,गुजर जायेगा
इसके गुजर जाने से पहले प्रेम की इस वर्षा को स्वीकार कर लो .....
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